कभी किसी ज़माने में कृषि महोत्सव मनाया जाता था जैसे की आज कल महोत्सव मनाया जाता है जो बिलकुल आत्मघाती सा लगता है , उस समय राजा अपनी मंत्रियों के साथ हल जोतता था और आज सी ऍम अपनी मंत्रियों के साथ न जाने क्या क्या करते हैं , उनको कृषि महोत्सव पसंद नहीं है क्योंकि वोह भोजन को पचाने में ही परेशां हैं बहुत सारे लोग मिलकर जो उत्पादन करते हैं वोह उसको खाने के साथ साथ उत्पादक को ही खा जाते हैं और उस निर्बल की मृत्यु हो जाती है , मरते लेकिन दोनों ही हैं निर्बल न खाने की वजह से तो सबल ज्यादा खा लेने की वजह से
सब कुछ पचा लेना भी इतना आसान नहीं है
आज कल राजनितिक दलों मे एक अजीब सी बेचैनी देखि जा सकती है मुद्दाविहीन पार्टियों को कुछ भी सूझ नहीं रहा है वजह बिलकुल साफ़ है अब सपने दिखा कर वोट बैंक की राजनीती करने का वक़्त चला गया , अब न नोटों की माला वोटों का ढेर लगा पायेगी और न सीटी बजाने से काम चलेगा अब तो वाकई कुछ कर दिखाने का समय आ गया है महिला आरक्षण बिल की आड़ मे अपनी राजनितिक रोटियां सेंकने वालों की भी दाल गलती नज़र नहीं आ रही आ रही है समर्थन और विरोध के बीच फंसी पार्टियों को कहीं से भी जनमानस के जनसैलाब के उमडने की खबर नहीं आ रही है इस समय बडे बडे नेता बस पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच घिर कर ही संतोष कर ले रहे हैं झूटे वादों से ऊब चुकी जनता पूरी तरह विमुख होकर चुनाव के समय सबक सिखाने की ठान चुकी है , इस बदली हुई संस्कृति के बीच राजनीती के खिलाडियों को कोई नया दांव नहीं सूझ रहा है और वह उलझ कर रह गए हैं जैसे जैसे चुनावी दंगल का समय नज़दीक आता जा रहा है वैसे वैसे बडे बडे रणनीतिकार तरह तरह के प्रयोग करने मे जुट गए हैं बडे बडे थिंक टैंक रात दिन बैठ कर बस इसी चिंता मे लीन हैं की इस बार कौन सा लालीपाप अजमाया जाये शिक्षा का स्तर बढने के साथ साथ जागरूकता के बढने के कारण जनता ने भी अब सपनो मे जीना बंद कर दिया है और वास्तविकता मे जीने मे अपनी भलाई देखती है हर पल भाग रही दुनिया के बदलाव की खबर पार्टियों को भले ही न हों लेकिन यह पब्लिक है यह सब देखती भी है और जानती भी है खबरों मे भी मनोरंजन मात्र ढून्ढ लेना सभी जाने हैं क्या आपने नहीं देखा की उस कीमती माला ने सबका कितना मनोरंजन किया , मुलायम की सीटी ने महिलाओ के मन को आहात ही नहीं किया बल्कि कई ऐसे सवालों को जन्म ज़रूर दे दिया की अब तो बोलना सीख लो बार बार बिल्ली के भाग्य से छींका नहीं टूटने वाला है नेताओं के बयान को लेकर तरह तरह के व्यंग्य बांड सुन कर हंसी आना लाज़मी है किसी ने कहा की कृषि मंत्री चीनी कम खाने की सलाह दे रहे हैं तो किसी ने होली पर यह तक कह डाला की वोह वस्त्र मंत्रालय देख रहे होते तो क्या होता , वहीँ महंगाई के मुद्दे को ही ले लीजिये वैट लागू होने से लेकर अब तक , शोपिंग मोल से लेकर कमोडिटी एक्सचेंज तक सर्विस टैक्स हों या सैट व्यापारी नेताओं ने हमेशा जनता का शुब्चिन्तक होने का दावा किया धरना प्रदर्शन जुलुस पुतला दहन नारे बाज़ी के बीच आम आदमी का कहीं आता पाता नहीं फिर भी व्यापारी नेताओ ने कोई कमी नहीं छोड़ी यह दिखाने का पूरा प्रयास किया की हम देश की जनता के साथ खडे हैं तभी तो आज तक उनकी मांगों को किसी सरकार ने गंभीरता से नहीं लिया और सब कुछ सामान्य रूप से चल रहा है वैट भी लग रहा है और सैट bhi सर्विस टैक्स जमा हों ही रहा है देश मे बड़ी बड़ी गाड़ियों के लश्कर सन्नाटे को समाप्त कर जाम का रूप ले चुके हैं देश मे धन और ऐश्वर्या की देवी लक्ष्मी की कृपा चारो और दिखाई दे रही है खुशहाल भारत का सपना साकार होता नज़र आ रहा है दुनिया के मानचित्र पर अपनी अलग जगह बना चुके हमारे देश के युवा कुछ कर गुज़रने का ज़ज्बा रखते हैं वो दिन दूर नहीं है जब भारत की जनता साफ़ सुथरी छवि वाली सरकारों के चयन की ज़िम्मेदारी का निर्वहन करेंगे और फिर देश प्रेम का झूठा प्रहसन करने वाले राजनेताओं को जनता की वास्तविक आदालत मे आत्मसमर्पण करना ही पड़ेगा
एस. ऍम. अजहर
लखनऊ
समय ९:२७
दिनक
२६ मार्च २०१०
गुरुवार, 1 अक्तूबर 2009
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